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क्षेत्र में गायब, घटता जनाधार, डूबती नैया को अब भाजपा का सहारा

by Vishal Maheshwari
December 14, 2022
in विशेष
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क्षेत्र में गायब, घटता जनाधार, डूबती नैया को अब भाजपा का सहारा
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उझानी(बदायूं)। सपा के पूर्व मंत्री विमल कृष्ण अग्रवाल व उनकी चेयरमैन पत्नी पूनम अग्रवाल ने मंगलवार को भाजपा का दामन थाम लिया। निकाय चुनाव से पूर्व यह बड़ा कदम माना जा रहा है। समाजवादी पार्टी से तीन चुनाव हार चुके विमल कृष्ण अग्रवाल हाशिये पर हैं, साथ ही चेयरमैन पूनम अग्रवाल भी क्षेत्र में सक्रिय नहीं हैं, उनके खिलाफ लोगों में खासी नाराजगी है, जनाधार भी घट रहा है। ऐसे में उनके राजनैतिक रसूख की डूबती नैया को अब भाजपा का सहारा है।

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विमल कृष्ण अग्रवाल साल 2002 में सदर विधानसभा सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव जीते थे। इसके बाद वह सपा में शामिल हो गए। हालांकि 2007 में उन्हें इसी सीट से भाजपा के महेश चन्द्र गुप्ता ने शिकस्त दी। इसके बाद उन्होंने अगला चुनाव बिल्सी विधानसभा से लड़ा। साल 2012 के इस चुनाव में भी विमल कृष्ण अग्रवाल को हार का सामना करना पड़ा, बसपा से हाजी मुसर्रत अली ने जीत हासिल की। समाजवादी पार्टी के टिकट पर दो चुनाव हारने के बावजूद पार्टी ने उन्हें 2017 में भी बिल्सी से अपना उम्मीदवार बनाया। लेकिन इस चुनाव वो तीसरे स्थान पर खिसक गए और भाजपा से आरके शर्मा को जीत मिली।

वहीं विधानसभा चुनाव 2022 में भी विमल कृष्ण अग्रवाल को समाजवादी पार्टी से बिल्सी से टिकट मिलने की आस थी लेकिन सपा-महान दल गठबंधन में यह सीट महान दल के खाते में चली गयी। अपने खाते की सीट महान दल के नाम करने के बाद से ही विमल किशोर अग्रवाल पार्टी से नाराज थे। बताया जाता है कि उन्होंने बिल्सी से टिकट के लिए भाजपा से भी सम्पर्क किया था लेकिन खिचड़ी नहीं पकी और भाजपा ने हरीश शाक्य को अपना उम्मीदवार बना दिया।

पत्नी ने जीता लगातार चुनाव लेकिन घट गया जनाधार
एक तरफ विमल कृष्ण अग्रवाल को तीन चुनावों में हार का सामना करना पड़ा दूसरी तरफ उनकी पत्नी पूनम अग्रवाल ने लगातार तीन चुनावों जीत दर्ज की। पूनम अग्रवाल ने 2006 में उझानी नगर पालिका से अपना पहला चुनाव जीता था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। साल 2012 और 2017 में भी उन्होंने जीत दर्ज की। हालाँकि 2017 की जीत में उनका बड़ा जनाधार घट गया। जहाँ 2012 में उन्होंने अपनी प्रतिद्धंदी रानी सवा को छह हजार एक सौ 37 वोट से हराया था वहीं 2017 के चुनाव में उन्हें 2411 वोट से जीत मिली थी।

इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने शंकर गुप्ता को अपना उम्मीदवार बनाया था। भाजपा ने यह चुनाव बड़े ही जोर शोर से लड़ा था। वोटिंग काउंटिंग के दिन शुरुआत से भाजपाई जश्न के मूड में थे जबकि समाजवादी पार्टी के खेमे में सन्नाटा पसरा हुआ था लेकिन नतीजों में पूनम अग्रवाल के खाते में 13 हजार 85 वोट आए। उनके प्रतिद्वंद्वी शंकर गुप्ता 10 हजार 674 वोट के साथ दूसरे स्थान पर रहे।

क्षेत्र में गायब रहती हैं पूनम अग्रवाल
बतौर चेयरमैन पूनम अग्रवाल की पालिका क्षेत्र में सक्रियता पर हमेशा से सवाल उठते रहे हैं। चुनावी दिनों के अलावा क्षेत्र में उनकी मौजूदगी नहीं रहती है। नगर पालिका में भी उनके पति प्रतिनधि के तौर पर नजर आते हैं। सफाई के मामले में पूनम अग्रवाल के नेतृत्व में पालिका ने नगर को दो हिस्सों में बाँट दिया है। कई इलाकों में गंदगी का अम्बार लगा हुआ है लेकिन चेयरमैन की कोठी के आसपास का इलाका चमकता रहता है। बीते दिनों प्रदेश सरकार ने ठेले-खेमचों लगाने वाले गरीब दुकानदारों को वेंडिंग जोन बनाने का आदेश दिया था लेकिन पालिका ने इस आदेश को भी ठन्डे बस्ते में डाल दिया है। ऐसे में नगर में उनके खिलाफ लोगों में नाराजगी है।

राजनैतिक रसूख को बचाना चुनौती
समाजवादी पार्टी से विमल कृष्ण अग्रवाल अपने तीन चुनाव हार चुके हैं, सपा से आगामी चुनावों में भी उनकी दावेदारी तय नहीं है वहीं तीन जीत के बाद पूनम अग्रवाल का यह चौथा चुनाव है। उन्हें आशंका है कि क्षेत्र में लोगों की नाराजगी, घटता जनाधार खासा नुकसान पहुँचा सकता है। ऐसे में अग्रवाल परिवार अपना राजनैतिक रसूख बचाए रखना चाहता है। इसी कड़ी में उन्होंने भाजपा में शामिल होने का फैसला लिया।

तो अब किधर जाएगा मुस्लिम समुदाय?
बीते निकाय चुनाव में पूनम अग्रवाल की जीत में मुस्लिम समुदाय की बड़ी भूमिका थी। जहाँ भाजपा ने दमखम से चुनाव लड़ा था वहीं मुस्लिम समुदाय ने भी पूनम अग्रवाल को एकमुश्त वोट दिया। पूनम अग्रवाल के भाजपा में शामिल होने के बाद मुस्लिम समुदाय न सिर्फ हैरान है, बल्कि दूसरी राजनैतिक पार्टियों से अच्छे उम्मीदवार की आस लगा रहा है।

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