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रमजान के बाद आया ईद-उल-फित्र का पर्व, जानें ईद की पूरी कहानी

रमजान का महीना इस्लामिक कैलेंडर का सबसे पवित्र महीना माना गया है। इस दौरान अल्लाह की इबादत करते हैं और बिना कुछ खाए पिए रोजा रखते हैं। दसवें महीने शव्वाल की पहली चांद वाली रात ईद की रात होती है। इस चांद को देखे जाने के बाद ही ईद-उल-फित्र का ऐलान किया जाता है। इस बार ईद का त्योहार भारत में 5 जून को मनाया जाएगा। मुसलमानों का सबसे बड़ा त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व न सिर्फ हमारे समाज को जोड़ने का मजबूत सूत्र है, बल्कि यह इस्लाम के प्रेम और सौहार्दभरे संदेश को भी पुरअसर ढंग से फैलाता है।

एक महीने के रोज़ेदाराना जिंदगी बिताने के बाद मुसलमान आज़ादी के साथ खाते-पीते हैं। खुदा का शुक्र अदा करते हुए ईद की नमाज़ सामूहिक रूप से पढ़ते हैं। समाज के सभी लोगों से मिलते हैं और खुशी मनाते हैं।  इस ईद को मीठी ईद या फिर सेवाइयों वाली ईद भी कहते हैं।  ईद का त्योहार भाईचारे को बढ़ावा देने वाला और बरकत के लिए दुआएं मांगने वाला है। पहली ईद उल-फित्र पैगंबर मुहम्मद ने सन् 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया थी। पैगंबर हजरत मोहम्मद ने बद्र के युद्ध में विजय प्राप्त की थी। उनके विजयी होने की खुशी में यह त्योहार मनाया जाता है।

पवित्र कुरान के मुताबिक, रजमान के पाक महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह एक दिन अपने बंदों को बख्शीश और इनाम देता है। इसीलिए इस दिन को ईद कहते हैं और बख्शीश और इनाम के इस दिन को ईद-उल-फितर कहा जाता है। मुसलमान ईद में खुदा का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीनेभर के उपवास रखने की ताकत दी। ईद पर एक खास रकम (जकात) गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है। नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है, जो प्रतिदिन खाने की हो।

मीठी ईद भी कहा जाने वाला यह पर्व खासतौर पर भारतीय समाज के ताने-बाने और उसकी भाईचारे की सदियों पुरानी परंपरा का वाहक है। इस दिन विभिन्न धर्मों के लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे से गले मिलते हैं और सेवइयां अमूमन उनकी तल्खी की कड़वाहट को मिठास में बदल देती है। मीठी ईद के ढाई महीने बाद ही ईद-उल-अजहा आती है। ईद-उल-अजहा को बकरीद भी कहा जाता है।

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