संभल। उत्तर प्रदेश के संभल में सैयद सालार मसूद गाजी की याद में नेजा मेला का आयोजन नही किया जाएगा। प्रशासन ने साफ कह दिया है कि लुटेरों के नाम पर मेले के आयोजन की अनुमति नहीं देंगे। इस कुरीति को बदला जाएगा।
शहबाजपुर सूरा नगला में वर्षों से नेजा मेला का आयोजन होता है। इस मेले का आयोजन सैयद सालार मसूद गाजी की याद में किया जाता है। इस पर अक्सर विवाद भी होता आया है, दो वर्ष पूर्व नेजा मेले के नाम बदलकर सद्भावना मेला कर दिया गया था। वहीं सोमवार को एक वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में अपर पुलिस अधीक्षक से मेले की अनुमति के लिए आए लोगों से पूछा कि आप किसके नाम पर मेले का आयोजन करते हैं। जब आयोजकों ने कहा कि सैयद सलार मसूद गाजी के नाम पर नेजा मेला का आयोजन होता है तो अपर पुलिस अधीक्षक ने साफ-साफ कह दिया कि सैयद सलार मसूद गाजी के नाम पर मेले की अनुमति नहीं देंगे। उन्होंने यहां तक कहा कि सोमनाथ मंदिर लूटने वालों के नाम पर मेले की अनुमति नहीं दी जा सकती। अब कुरीति को बदला जाएगा।
पहले भी एसडीएम ने किया था इनकार
इससे पहले बुधवार को नेजा कमेटी के पदाधिकारियों ने नगर में लगने वाले नेजा मेले को लेकर एसडीएम डॉ. बंदना मिश्रा से मुलाकात की थी। पदाधिकारियों ने मेले के आयोजन की अनुमति मांगी थी, लेकिन तब भी एसडीएम ने साफ कर दिया था कि नेजा मेले के नाम पर कोई अनुमति नहीं दी जाएगी।
कौन था मसूद गाजी?
महमूद गजनवी की गिनती दुनिया के सबसे क्रूर शासकों में होती है। सैयद सालार मसूद गाजी इसी गजनवी का भांजा था और उसकी सेना का सेनापति भी था। 1001 ई में दोनों ने भारत की तरफ रुख किया था। इसके बाद एक-एक कर भारत की हिंदू आस्था पर हमला किया। इन्होंने भारत के प्राचीन मंदिर पर हमले किए। मंदिर से लेकर हर जगह खजानों की लूट की। इसके साथ ही जबरन हिंदुओं का बड़े स्तर पर धर्म परिवर्तन कराया। कोई भी इनके रास्ते में आया तो उस पर हमला कर रियासतें खत्म कर दीं। सैयद सालार मसूद गाजी का सबसे बड़ा हमला सोमनाथ मंदिर काठियावाड़ पर था। 1026 ई में हुए इस हमले को हिंदुओं की आस्था पर सबसे बड़ी चोट माना गया।
भारत पर हमले के दौरान 1033 ई. में सैयद सालार मसूद गाजी बहराइच तक पहुंच गया। बहराइच, लखनऊ समेत आस-पास के राजाओं को ललकारा और लूट की कोशिश की। इस दौरान उसका सामना महाराजा सुहेलदेव राजभर से हुआ। महाराजा सुहेलदेव राजभर ने उस वक्त तक 21 पासी राजाओं के साथ मिलकर गठबंधन में एक संयुक्त सेना तैयार कर ली थी। इन राजाओं में बहराइच, श्रावस्ती के साथ ही लखीमपुर, सीतापुर, लखनऊ और बाराबंकी के राजा भी शामिल थे। बहराइच में भीषण युद्ध में महाराजा सुहेलदेव राजभर की सेना ने सालार मसूद गाजी को करारी शिकस्त दी। हार के साथ ही युद्ध में सालार मसूद गाजी को जान भी गंवानी पड़ी। एक रिसर्च पेपर (The Forgotten Battle of Bahraich) में दावा किया गया है कि सुहेलदेव ने या तो मसूद का सिर काट दिया या फिर उसके गले में तीर मारा था। इस रिसर्च के मुताबिक मसूद की मौत सूर्यकुंड झील के पास महुए के पेड़ के नीचे हुई। इसके बाद उसकी सेना ने बहराइच में ही उसको दफना दिया। काफी समय के बाद दिल्ली के सुल्तानों के दौर में यहां मजार बनी और इसे दरगाह के रूप दे दिया गया।


