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यूपी पंचायत चुनाव: नई आरक्षण सूची में बदल सकती है हर सीट, जानिये क्या होगी व्यवस्था?

लखनऊ। इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार की पंचायत चुनाव के लिए ‘आरक्षण नीति’ को बदल दिया है। बेंच ने यूपी सरकार को 27 मार्च तक आरक्षण की नई लिस्ट जारी करने को कहा है। इसके साथ ही पंचायत चुनाव की पूरी प्रक्रिया 25 मई के अंदर कराने का निर्देश दिया है। चूंकि अब सरकार को 2015 के आधार पर आरक्षण लागू करना है तो साफ है कि यूपी के सभी जिलों की आरक्षण बदल सकता है। 

दो मार्च को जो आरक्षण आवंटन की अनंतिम सूची प्रकाशित की गई थी, उसमें आरक्षण वर्ष 1995 को माना गया था। यूपी सरकार की तरफ से आदेश जारी करने के बाद से ही इसपर खूब चर्चा थी। इसका नफा-नुकसान गिनाया जाने लगा था। कुछ जानकार इसे विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी की रणनीति बता रहे थे, ऐसा कहा जा रहा था कि जिन सीटों पर सालों साल किसी एक तबके का कब्जा था, उसे बदला जाएगा।

आधार वर्ष माने जाने से आरक्षण की चक्रानुक्रम की व्यवस्था वहीं से शुरू मानी गई। उसी साल से जोड़ा गया कि कौन से गांव कभी ओबीसी नहीं रहे थे और कौन से कभी एससी नहीं रहे थे। इसे कुछ ऐसे समझ सकते हैं कि यदि किसी ब्लाक में एससी का कोटा 15 गांव का है और 1995 से अब तक उस ब्लाक में 20 ऐसे गांव थे जो कभी एससी नहीं हुए थे तो ऊपर से अधिक आबादी वाले 15 गांवों को एससी के लिए आरक्षित कर दिया गया। इसी तरह यदि किसी ब्लाक में ओबीसी का कोटा 18 गांव का है और 20 गांव कभी ओबीसी नहीं हुए थे, तो वहां भी आबादी के अनुसार ऊपर से 18 गांवों को इस वर्ग के लिए आरक्षित किया गया था।

अजय कुमार नाम के याचिकाकर्ता की अर्जी पर हाई कोर्ट ने यूपी सरकार की ओर से पंचायत चुनाव पर जारी फाइनल लिस्ट पर रोक लगा दी थी और राज्य सरकार और चुनाव आयोग से जवाब माँगा था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि पंचायत चुनाव में आरक्षण के लिए 1995 को आधार वर्ष नहीं माना जाए और इसके बेस ईयर को बदलकर 2015 किया जाए। यह याचिका 11 फरवरी, 2021 के यूपी सरकार के फैसले के खिलाफ दर्ज की गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि 1995 को बेस ईयर मानने से जहां जेनरल सीट होनी चाहिए थी, उसे ओबीसी कर दिया गया था और जो ओबीसी के लिए होना चाहिए था, उसे अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि इस व्यवस्था ने चुनाव लड़ने के इच्छुक प्रत्याशियों में निराशा भर गई थी। इसलिए सरकार के आदेश को रद्द करके आरक्षण का आधार साल 2015 माना जाए और आखिरकार अदालत ने इस दलील पर मुहर लगा दी।

अखिलेश यादव सरकार की आरक्षण नीति

अखिलेश यादव की सरकार ने साल 2015 के पंचायत चुनाव के पहले पंचायती राज नियमावली में 10वां संशोधन किया था, जिसके तहत ग्राम प्रधान और ग्राम पंचायत सदस्यों के पदों के पहले की आरक्षण प्रणाली को शून्य कर दिया था और नए सिरे से साल 2011 की जनगणना के आधार पर सीटें तय की गई थीं। इस नियमावली के आधार पर साल 2021 की जनगणना होने के बाद 2025 में होने वाले पंचायत चुनाव में इस साल (2021) के और साल 2015 के आरक्षण की स्थिति को शून्य कर दिया जाएगा।

योगी आदित्यनाथ सरकार की आरक्षण नीति

योगी सरकार ने पंचायती राज नियमावली में 11वां संशोधन कर अखिलेश यादव सरकार के फैसले को बदल दिया था। योगी ने 10वां संशोधन समाप्त करते हुए पंचायत की सीटों के लिए आरक्षण प्रणाली लागू करने में साल 1995 को आधार बनाया। इस फॉर्म्युले के तहत साल 1995 से जो सीटें कभी भी आरक्षण के दायरे में नहीं आई थीं, उन्हें भी आरक्षित कर दिया गया था। इस प्रणाली के मुताबिक, पंचायत की जो सीटें 1995 से लेकर साल 2015 चुनाव तक कभी भी अनुसूचित जनजातियों, अनुसूचित जातियों, पिछड़ा वर्ग और महिलाओं के लिए आरक्षित थीं, उन्हें इस बार उसी वर्ग के लिए आऱक्षित नहीं किया जाएगा।

अब आगे क्या होगा?

2015 को आधार वर्ष मानने पर यह देखा जाएगा कि ब्लाक में ऐसे कौन से गांव हैं, जो उस वर्ष के चुनाव में (2015) एससी या ओबीसी के लिए आरक्षित नहीं थे। अब केवल एक चुनाव को आधार बनाने पर हर ब्लाक में ऐसे गांवों की संख्या बढ़ जाएगी, जहां पिछली बार एससी या ओबीसी का आरक्षण नहीं था। ऐसे में एससी के लिए 15 गांव के कोटे वाले ब्लॉक में यदि ऐसे 50 गांव निकल गए तो उनमें से आबादी के क्रम में ऊपर से 15 गांवों को आरक्षित कर दिया जाएगा। इससे पिछली बार आरक्षित कई गांव इससे मुक्त हो जाएंगे। यही हाल ओबीसी के लिए भी होगा, उससे भी कई गांव बाहर आकर अनारक्षित या दूसरे वर्ग के लिए आरक्षित हो सकते हैं।

इससे पहले पंचायत चुनाव की अंतिम आरक्षण लिस्ट 17 मार्च को आनी थी लेकिन अब 27 मार्च तक आरक्षण की नई लिस्ट आएगी। ऐसे में अब पहले जहां अप्रैल के अंत तक पंचायत चुनाव कराने की संभावना जताई जा रही थीं, वहीं पंचायत चुनाव का समय अब और बढ़ गया है। साथ ही अब प्रशासन के लिए बेहद चुनौती भरे होंगे। अब नए सिरे से फिर कवायद करनी होगी। आरक्षित सीटों की तय संख्या और 2011 की जनगणना के हिसाब से फिर आरक्षण तय करना पड़ेगा। यह भी आसान काम नहीं है। सूची का प्रकाशन करके फिर आपत्तियां मांगी जाएंगी। इनका निराकरण करके अंतिम सूची का प्रकाशन किया जाएगा।

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