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ठगी, चोरी, बलात्कार, हत्या, देशद्रोह… जानिए नए कानून में किस अपराध के लिए कौन-सी धारा लगेगी?

by Badaun Today Staff
July 2, 2024
in हमारा कानून
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अब किसी भी थाने में दर्ज करा सकेंगे एफआईआर, एक जुलाई से लागू होंगे नए कानून
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नई दिल्ली। तीन आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता एक जुलाई यानी सोमवार से देश में हो लागू हो गए हैं। नए कानून के तहत ही केस दर्ज होने लगे हैं हालाँकि इसमें कई धाराएं भी बदल गई हैं।

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भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह को समाप्त कर दिया गया है। वहीं भारत की एकता और अखंडता को खतरा पहुंचाने वाले कृत्यों को देशद्रोह में शामिल किया गया है। वहीं आईपीसी में मॉब लिंचिंग का भी जिक्र नहीं था। अब इस अपराध के लिए उम्रकैद से लेकर मौत तक की सजा हो सकती है। हत्या के लिए आईपीसी में धारा 302 थी जो कि बीएनएस में धारा 101 हो गई है। हत्या का प्रयास का मुकदमा जो धारा 307 के तहत दर्ज होता था, अब धारा 109 के तहत दर्ज होगा। गैर इरादतन हत्या के लिसए धारा 105 लागू होगी जो कि आईपीसी में धारा 304 थी। दहेज हत्या से जुड़ी धारा 80 होगी जो कि आईपीसी में धारा 304बी थी। चोरी के लिए अब धारा 303 में मुकदमा दर्ज किया जाएगा। आईपीसी के तहत धारा 379 में चोरी का मुकदमा दर्ज होता था।

अब नहीं होगी धारा 420
इसी तरह रेप की धारा 376 से बदलकर अब 64 हो गई है। छेड़छाड़ का मुकदमा धारा 74 के तहत दर्ज होगा। धोखाधड़ी का केस धारा 420 की जगह अब 318 के तहत दर्ज होगा। लापरवाही से मौत का मामला धारा 106 के अंतरगत आएगा जो कि पहले 304ए में आता था। आपराधिक षड्यंत्र के लिए धारा 120बी की जगह धारा 61 लागू होगी। मानहानि के लिए धारा 499, 500 की जगह अब 356 लागू होगी। लूट और डकैती के लिए क्रमशः धारा 309 और धारा 310 होगी।

विदेशों में हमला भी माना जाएगा आतंकवाद
आतंकवाद को लेकर बीएनएस की धारा-113 में सारी जानकारी दी गई है। देश के बाहर भारत की किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना भी अब आतंकवादी कृत्य माना जाएगा। पिछले साल अमेरिका, कनाडा, और ब्रिटेन में भारतीय दूतावास पर हुए हमले के बाद विदेश में हुए हमले को भी आतंकवाद की श्रेणी में रखा जाएगा। इसके अलावा आतंकवाद की परिभाषा को संप्रभुता, अखंडता और सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक सुरक्षा से भी जोड़ा गया है। नकली नोट या सिक्कों का चलाना या उनकी तस्करी को भी आतंकवाद की कैटेगरी में रखा गया है। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर उम्रकैद या मौत की सजा हो सकती है। आतंकी साजिश रचने के लिए पांच साल से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है। आतंकवादी संगठन से जुड़ने पर उम्रकैद या जुर्माने का प्रावधान है। आतंकियों को छिपाने पर तीन साल से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है, जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

खत्म हो गया राजद्रोह का अपराध
भारतीय न्याय संहिता में राजद्रोह को समाप्त कर दिया गया है। वहीं भारत की एकता और अखंडता को खतरा पहुंचाने वाले कृत्यों को देशद्रोह में शामिल किया गया है। इसके लिए बीएनएस की धारा 152 लगाई जाएगी।

क्राइमपहले IPCअब BNS
हत्याधारा 302धारा 103
हत्या का प्रयासधारा 307धारा 109
गैर इरादतन हत्याधारा 304धारा 105
दहेज हत्याधारा 304बीधारा 80
चोरीधारा 379धारा 303
दुष्कर्मधारा 376धारा 64
छेड़छाड़धारा 354धारा 74
धोखाधड़ीधारा 420धारा 318
लापरवाही से मौतधारा 304एधारा 106
आपराधिक षडयंत्र के लिए सजाधारा 120बीधारा 61
देश के खिलाफ युद्धधारा 121, 121एधारा 147, 148
मानहानिधारा 499, 500धारा 356
लूटधारा 392धारा 309
डकैतीधारा 395धारा 310
पति द्वारा क्रूरता का शिकार महिलाएंधारा 498एधारा 85

बदल गए नाम
इंडियन पीनल कोड (IPC) अब भारतीय न्याय संहिता (BNS) हो गया है
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर (CrPC) अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS)
इंडियन एविडेंस एक्ट (IEA) अब हुआ भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA)

FIR से फैसले तक बदल गए प्रावधान
IPC में जहां 511 धाराएं थीं वहीं BNS यानी भारतीय न्‍याय संहिता में 357 धाराएं हैं। इनमें ओवरलेपिंग वाली धाराओं को मिलाते हुए उन्‍हें सरल किया गया है। दरअसल एक जैसी धाराओं का आपस में विलय कर दिया गया तथा उन्हें सरलीकृत किया गया है।

BSA: अब इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी मान्‍य
अब तक इंडियन एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थीं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम में कुल 170 धाराएं हैं। नए कानून में 6 धाराएं रद्द कर दी गई हैं वहीं नए एक्‍ट में दो नई धाराएं और 6 उप धाराएं जोड़ी गई हैं। इसमें गवाहों की सुरक्षा के लिए भी प्रावधान तय किए गए है।दस्तावेजों की तरह इलेक्ट्रॉनिक सबूत भी कोर्ट में मान्य होंगे। इसमें मोबाइल फोन, मैसेजेस, ई-मेल वगैरह से मिलने वाले सबूत भी वैध माने जाएंगे।

FIR के 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होगी चार्जशीट
FIR के 90 दिनों के भीतर दाखिल करनी होगी चार्जशीट दाखिल करनी होगी। चार्जशीट दाखिल होने के 60 दिनों के भीतर कोर्ट को आरोप तय करने होंगे। इसके साथ ही मामले की सुनवाई पूरी होने के 30 दिनों के भीतर जजमेंट देना होगा। जजमेंट दिए जाने के बाद 7 दिनों के भीतर उसकी कॉपी मुहैया करानी होगी। पुलिस को हिरासत में लिए गए शख्स के बारे में उसके परिवार को लिखित में बताना होगा। ऑफलाइन, ऑनलाइन भी सूचना देनी होगी। 7 साल या उससे ज्यादा सजा वाले मामले में विक्टिम को सुने बिना वापस नहीं किया जाएगा। थाने में कोई महिला सिपाही भी है तो उसके सामने पीड़िता के बयान दर्ज कर पुलिस को कानूनी कार्रवाई शुरू करनी होगी।

किन मामलों में नहीं कर सकेंगे अपील?
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 417 में बताया गया है कि हाईकोर्ट से किसी दोषी को 3 महीने या उससे कम की जेल या 3 हजार रुपये तक का जुर्माना या दोनों की सजा मिलती है तो इसे ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती। आईपीसी में धारा 376 थी, जिसके तहत 6 महीने से कम की सजा को चुनौती नहीं दे सकते थे यानी नए कानून में थोड़ी राहत दी गई है।

इसके अलावा अगर सेशन कोर्ट से किसी दोषी को तीन महीने या उससे कम की जेल या 200 रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा मिलती है तो इसे भी चुनौती नहीं दे सकते वहीं, अगर मजिस्ट्रेट कोर्ट से किसी अपराध में 100 रुपये का जुर्माने की सजा सुनाई जाती है तो उसके खिलाफ भी अपील नहीं की जा सकती। हालांकि, अगर किसी और सजा के साथ-साथ भी यही सजा मिलती है तो फिर इसे चुनौती दी जा सकती है।

पुरानी जांच और ट्रायल पर असर नहीं
वे मामले जो एक जुलाई से पहले दर्ज हुए हैं, उनकी जांच और ट्रायल पर नए कानून का कोई असर नहीं होगा। एक जुलाई से सारे अपराध नए कानून के तहत दर्ज होंगे। अदालतों में पुराने मामले पुराने कानून के तहत ही सुने जाएंगे। नए मामलों की नए कानून के दायरे में ही जांच और सुनवाई होगी।

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