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जब कल्याण सिंह ने बंद करवा दी थी परीक्षा में नकल

Badaun Today Staff by Badaun Today Staff
August 22, 2021
जब कल्याण सिंह ने बंद करवा दी थी परीक्षा में नकल
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लखनऊ। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री रहे कल्याण सिंह का शनिवार शाम को निधन हो गया। उन्होंने 89 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली। कल्याण सिंह लंबे समय से बीमार चल रहे थे और लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था। कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर संघर्षपूर्ण रहा, सत्ता के दौरान उनके फैसलों ने शासन के साथ ही सियासत में ऐसी इबारत लिखी जिससे असर आज भी साफ पढ़ा जा सकता है।

कल्याण सिंह 24 जून 1991 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए 6 दिसम्बर 1992 को मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था। कल्याण सिंह एक ऐसे शिक्षक थे, जिन्हें कभी शिक्षा और परीक्षाओं की शुचिता से समझौता पसंद नहीं था। कल्याण सिंह के साथी शिक्षक राम रजपाल द्विवेदी के संस्मरणों में एक किस्सा है कि परीक्षा मेें एक बार एक छात्र नकल करने के लिए कुछ पर्चियां लेकर पहुंचा था। कल्याण सिंह को उस पर पूरा शक हो गया। उन्होंने द्विवेदी से कहा कि आज पूरे समय केवल इसी पर नजर रखनी है। वह कक्ष में लगातार टहलते रहे और लड़का नकल नहीं कर सका।

शायद यही कारण था कि 1991 में भाजपा की पहली बार सरकार बनने के बाद उन्होंने तत्कालीन शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के साथ मिलकर नकल विरोधी कड़ा कानून बना दिया और संज्ञेय अपराध भी घोषित कर दिया।

कल्याण सिंह के सीएम बनने के पहले मुलायम सिंह यादव के हाथ में सत्ता की बागडोर थी। उन्होंने यूपी बोर्ड की परीक्षा में स्वकेंद्र व्यवस्था लागू कर दी। यानी जहां, पढ़े वहीं, परीक्षा। इसने यूपी में नकल का पूरा उद्योग खड़ा कर दिया। कल्याण सिंह ने सीएम बनने के बाद नकल रोकने के लिए सख्त कानून बना दिया। इसके प्रावधान इतने कड़े थे कि बोर्ड परीक्षा के दौरान बच्चों और उनके अभिभावकों की हथकड़ी लगी तस्वीरें आम होने लगीं। नकल गैर जमानती अपराध बना दिया गया था।

इस नकल अध्यादेश के लागू होने से हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में नकल में कमी आई। अध्यादेश के लागू होने के बाद, पहले जहां यूपी बोर्ड का परिणाम 85 फीसद आता था वह घट कर 25 फीसदी तक हो गया। यूपी में नकल करना व नकल करवाना एक संज्ञेय अपराध माना जाने लगा था।

इससे यूपी बोर्ड का रिजल्ट ही धड़ाम नहीं हुआ बल्कि शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की सियासत भी धड़ाम हो गई। मोहान विधानसभा सीट से वे चुनाव हार गए और उनके विरोध में लड़ रहे सपा उम्मीदवार राजेंद्र यादव ने सबसे बड़ा मुद्दा नकल कानून की सख्ती को ही बनाया था। इसलिए, 1997 में जब कल्याण सिंह जब दोबारा सरकार में लौटे तो सख्ती तो जारी रहे लेकिन कानून के बहुत से अतिवादी पहलुओं को निकाल दिया।

अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हटे कल्याण सिंह
कल्याण सिंह ने अफसरों से स्पष्ट कह दिया था कि बीजेपी कार्यकर्ता आपके पास कोई काम लेकर आता है, यदि सही है तो वह जरूर होना चाहिए। अगर नहीं होने लायक है तो वह फिर किसी भी माध्यम से नहीं होना चाहिए। कल्याण का संदेश था कि सबको अपनी जिम्मेदारी उठानी चाहिए। 6 दिसंबर 1992 की घटना में उन्होंने खुद पर भी इसे लागू किया।

जून 1991 में सीएम बनने के करीब डेढ़ साल बाद ही अयोध्या में राममंदिर के लिए कारसेवा का आंदोलन आक्रामक हो रहा था। दिसंबर 1992 में प्रस्तावित कार्यसेवा में अनहोनी की आशंकाएं सिर उठा रही थीं। सुप्रीम कोर्ट के कटघरे से लेकर राष्ट्रीय एकता परिषद की बैठकों में शांति बहाली के कल्याण के वादों के बीच 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा ढहा दिया गया। कल्याण सिंह ने खुद इसकी जिम्मेदारी ली।

पूर्व सीएम कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट में शपथपत्र दिया था कि मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा और विवादित स्थल पर कोई भी घटना नहीं होने देंगे। मुख्यमंत्री की तरफ से ये शपथपत्र तत्कालीन प्रमुखसचिव गृह प्रभात कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में दिया था। 6 दिसंबर 1992 को जब घटना हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने शपथपत्र के आधार पर कल्याण सिंह को अवमानना नोटिस जारी किया गया। सुप्रीम कोर्ट में कल्याण सिंह ने सारी जिम्मेदारी अपने उपर ले ली, जिसके चलते उन्हें एक दिन के लिए जेल भेज दिया गया था।

उन्होंने सार्वजनिक तौर पर स्वीकारा कि उनके साफ निर्देश थे कि संतों और कारसवेकों पर पुलिस गोली नहीं चलाएगी। कल्याण ने यह कहते हुए सीएम की कुर्सी छोड़ दी कि ‘राम मंदिर के लिए एक क्या हजारों सत्ताएं कुर्बान’। इस घटनाक्रम ने यूपी के साथ ही पूरे देश की सियासत बदलकर रख दी।

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