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पुरानी रोस्टर प्रणाली के लिए अध्यादेश लायेगी केंद्र सरकार

Badaun Today Staff by Badaun Today Staff
February 11, 2019
पुरानी रोस्टर प्रणाली के लिए अध्यादेश लायेगी केंद्र सरकार
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बदायूं। उच्च शिक्षण संस्थाओं में नियुक्तियों में आरक्षण संबंधी रोस्टर प्रणाली को लेकर मचे विवाद (13 Point Roster) के बीच केंद्र सरकार ने इस पर विधेयक या अध्यादेश लाने का फैसला किया है। सांसद धर्मेन्द्र यादव के सवालों का जवाब देते हुए मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने अध्यादेश लाने की बात कही।

यूनिवर्सिटी की नौकरियों में अनसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने के नए तरीके ’13 पॉइंट रोस्टर’ को लेकर राज्यसभा में आज भी हंगामा हुआ। सांसद धर्मेन्द्र यादव ने कहा कि देश में एससी, एसटी और ओबीसी प्रोफेसर की संख्या बहुत कम है, इस रोस्टर को उल्टा कर पहला पद एसटी, दूसरा पद एससी, तीसरा पद ओबीसी और चौथा पद अन्य रिजर्व हो। जिससे आने वाले समय में एससी, एसटी और ओबीसी को समुचित न्याय मिल सके।अगर यह न्याय समुचित नही होता तो वर्तमान सरकार एससी,एसटी और ओबीसी की विरोधी है।

गतिरोध पर सरकार की स्थिति स्पष्ट करते हुये जावड़ेकर ने कहा कि आरक्षण संबंधी रोस्टर प्रणाली पर उच्चतम न्यायालय में याचिका खारिज होने की स्थिति में सरकार ने अध्यादेश या विधेयक लाने का फैसला किया है। जावड़ेकर ने कहा, ‘सरकार हमेशा सामाजिक न्याय के पक्ष में है, पुनर्विचार याचिका खारिज होने की स्थिति में हम अध्यादेश या विधेयक लाने का फैसला किया है’। जावड़ेकर ने इस मामले में न्यायिक प्रक्रिया पूरा होने तक उच्च शिक्षण संस्थाओं में नियुक्ति या भर्ती प्रक्रिया बंद रहने का भी भरोसा दिलाया।

200 पॉइंट रोस्टर क्या है?

देश के विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण की व्यवस्था 200 पॉइंट रोस्टर के आधार पर थी। इसमें एक से 200 तक पदों पर रिज़र्वेशन कैसे और किन पदों पर होगा, इसका क्रमवार ब्यौरा होता है. इस सिस्टम में पूरे संस्थान को यूनिट मानकर रिज़र्वेशन लागू किया जाता है, जिसमें 49.5 परसेंट पद रिज़र्व और 59.5% पद अनरिज़र्व होते थे। हालांकि अब इसमें 10% सामान्य वर्ग का आरक्षण भी शामिल कर लिया जाता।

यूनिवर्सिटी के सभी डिपार्टमेंट्स के पदों को A से Z तक एक साथ 200 तक जोड़ लिया जाता था। इसके बाद क्रम के अनुसार पहले 4 पद सामान्य, फिर ओबीसी, फिर एससी/एसटी इत्यादि के लिए पदों की व्यवस्था थी। इस व्यवस्था में सामान्य पदों की जगह आरक्षित पदों से भी नियुक्तियों की शुरुआत हो सकती है और अगर किसी श्रेणी में नियुक्ति नहीं होती है तो उस पद को बाद में, बैकलॉग के आधार पर भरा जा सकता था। इस हिसाब से 200 पॉइंट रोस्टर फ़ॉर्मूले में क्रम वार सभी तबक़ों के लिए पद 200 नंबर तक तय हो जाते हैं। लेकिन 13 प्वाइंट रोस्टर में ऐसा नहीं है.

यूनिवर्सिटी को एक यूनिट मान लेने से नियुक्तियों के लिए इतनी सीटें उपलब्ध थीं कि रिजर्व कैटेगरी के उम्मीदवारों की भागीदारी के लिए समुचित व्यवस्था हो पा रही थी लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस व्यवस्था को खत्म करके नियुक्तियों में 13 पॉइंट रोस्टर के नियम को लागू कर दिया।

13 पॉइंट रोस्टर क्या है?

13 पॉइंट रोस्टर में डिपार्टमेंट को यूनिट माना गया है और उसी हिसाब से सीटें भरी जाती हैं। इस रोस्टर के तहत जो वेकेंसी निकलेंगी उसके तहत शुरूआती तीन पद अनारक्षित, चौथा ओबीसी को फिर 5वां और 6ठा अनारक्षित, 7वां पद अनुसूचित जनजाति को, 8वां फिर से ओबीसी को और 9वां, 10वां, 11वां अनारक्षित, 12वां ओबीसी और 13वां फिर से अनारक्षित जबकि 14वां पद अनुसूचित जनजाति को दिया जाएगा। इसमें ओबीसी चौथे नंबर पर आता है यानी चार पोस्ट निकलेंगी तभी एक ओबीसी की भर्ती होगी। एससी सातवें नंबर पर है यानी सात पोस्ट होंगी तभी एससी की भर्ती होगी और इसी तरह एसटी की भर्ती के लिए एक डिपार्टमेंट में 14 खाली पद निकलेंगे तभी उनकी नियुक्ति हो सकेगी। जबकि ऐसा बहुत कम होता है कि किसी भी डिपार्टमेंट में एक साथ 13 या उससे ज़्यादा वेकेंसी निकलें। 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्लय जैसे तमाम विश्वविद्यालयों में ऐसे कई विभाग हैं जिनमें मात्र एक या दो या अंतिम 3 प्रोफेसर ही विभाग को संचालित करते हैं। वहां पर कभी भी ST/SC/OBC की नियुक्ति नहीं हो पाएगी। इसलिए ऐसा कहा जा रहा है कि 13 पॉइंट रोस्टर को लागू करके विश्वविद्यालयों में आरक्षण को खत्म करने कोशिश चल रही है।

क्या है स्थिति ?

MHRD के ऑल इंडिया सर्वे फॉर हायर एजुकेशन (2017-18) के मुताबिक फिलहाल देश में कुल 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिसमें कुल 11,486 लोग पढ़ाते हैं। इनमें 1,125 प्रोफ़ेसर हैं और इनमें दलित प्रोफ़ेसर 39 यानी 3.47 फ़ीसद, आदिवासी प्रोफ़ेसर सिर्फ़ 6 यानी 0.7 फ़ीसद, जबकि पिछड़े प्रोफ़ेसर 0 है जबकि सामान्य जातियों के 1071 यानी 95.2% हैं।

अगर असोसिएट प्रोफ़ेसर की बात करें तो 40 संस्थानों में कुल 2620 असोसिएट प्रोफ़ेसर हैं। इसमें 130 यानी 4.96% दलित, 34 यानी 1.3% आदिवासी हैं जबकि इसके उलट कुल 3434 यानी 92.9% सामान्य जातियों के प्रोफ़ेसर हैं. असिस्टेंट प्रोफ़ेसर की बात करें तो 40 केंद्रीय विश्वविद्यालय में 7741 असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. इसमें 12.2 % एससी, 5.46% आदिवासी, 14.38% ओबीसी जबकि 66.27% सामान्य वर्ग से हैं।

गौरतलब है कि भले ही सरकार ने संविधान संशोधन कर आर्थिक आधार पर आरक्षण लागू किया हो लेकिन संविधान में सामाजिक पिछड़ेपन को ही आधार बनाकर शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण दिया गया था। संविधान के अनुच्छेद 15(4), 16(4), 335, 340, 341, 342 में साफ़ तौर पर आरक्षण देने की वजह बताई गई हैं। हालांकि सरकार ने संविधान में दो नए अनुच्छेद 15(6) और 16(6) जोड़कर आर्थिक पिछड़ेपन को भी आरक्षण का आधार बना दिया है।

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