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जन्मदिन विशेष: 25 वर्ष की उम्र में सांसद बन गए थे धर्मेन्द्र यादव, विपक्षी भी हैं उनके कायल

by Vishal Maheshwari
February 4, 2021
in विशेष
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जन्मदिन विशेष: 25 वर्ष की उम्र में सांसद बन गए थे धर्मेन्द्र यादव, विपक्षी भी हैं उनके कायल
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बदायूं के पूर्व सांसद धर्मेन्द्र यादव का आज जन्मदिन है। राजनीतिक प्रतिभा के धनी, कुशल रणनीतिकार और विकास पुरुष माने जाने वाले धर्मेन्द्र यादव मात्र 25 वर्ष की उम्र में सांसद बन गए थे। उन्होंने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकार्ड बनाया। अक्टूबर 2012 में धर्मेंद्र यादव ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिन्दी में संबोधन दिया था। लोकसभा सदस्य रहते हुए संसद में उनके तीखे सवाल सत्ताधारी लोगों को अक्सर असहज कर देते हैं। गाँव से लेकर कस्बे, शहर तक उनके प्रशंसकों की लम्बी फेहरिस्त हैं, यहाँ तक उनके विपक्षी नेता भी उनकी वाक्पटुता, कार्यशैली के कायल हैं।

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धर्मेंद्र यादव देश के सबसे बड़े राजनितिक घराने में से एक यादव परिवार के सदस्य है। धर्मेंद्र यादव उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के भतीजे और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चचेरे भाई हैं। धर्मेंद्र यादव का जन्म सैफई में 3 फरवरी 1979 को हुआ। उनके पिता का नाम अभयराम यादव और माता का नाम जय देवी था। धर्मेंद्र यादव की आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई सैफई में हुई। इसके बाद शिक्षा के लिए वह इलाहाबाद चले गए। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में परास्नातक किया है। इसके अलावा उन्होंने एलएलबी की डिग्री भी प्राप्त की है। धर्मेंद्र यादव का राजनीति से नाता छात्र जीवन के समय से ही है। उन्होने इलाहवाद विश्वविद्यालय में समाजवादियों का झंडा हमेशा बुलंद रखा। इलाहाबाद में पढ़ाई के दौरान समाजवादी जनेश्वर मिश्र के सानिध्य में उन्होंने छात्र राजनीति की। इलाहाबाद में सपा का परचम लहराने का श्रेय जनेश्वर मिश्र को जाता है तो उनके सहायक के तौर पर धर्मेंद्र का भी नाम लिया जाता है।

वर्ष 2003 में जब वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपनी पढाई कर रहे थे तब उनके ताऊ रतन सिंह यादव के बेटे और सैफई ब्लॉक प्रमुख रणवीर सिंह यादव की हार्ट अटैक से अचानक मौत हो गई। रणवीर सिंह मुलायम के भाई रतन सिंह यादव के पुत्र थे। सैफई ब्लॉक प्रमुख की सीट खाली हुई तो सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव ने धर्मेन्द्र यादव को सैफई आने का बुलावा भेजा। नेताजी मुलायम सिंह यादव के निर्देश पर धर्मेन्द्र यादव को इलाहाबाद को छोड़कर सैफई आ गए और 2003 में धर्मेन्द्र यादव सैफई के ब्लॉक प्रमुख बने।

साल 2004 में सीएम रहते हुए मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से चुनाव लड़कर जीत हासिल की और बाद में उन्होंने यह सीट अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव के लिए खाली कर दी। मुलायम के भतीजे धर्मेंद्र यादव ने 25 साल की उम्र में ही सपा के गढ़ मैनपुरी से लोकसभा उपचुनाव लड़कर रिकॉर्ड वोटों से जीत हासिल की। धर्मेंद्र यादव ने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकार्ड बनाया।

इसके बाद समाजवादी पार्टी ने 2009 में बदायूँ से सलीम इकबाल शेरवानी का टिकट काटकर धर्मेन्द्र यादव को मैदान में उतारा। सलीम इकबाल शेरवानी 1996 से 2009 तक सपा के टिकट पर बदायूँ से जीत दर्ज कर चुके थे। टिकट कटने से नाराज शेरवानी ने बगावत कर दी और पूरे लोकसभा क्षेत्र में उस समय शेरवानी समर्थकों ने मुलायम सिंह यादव के पुतले जलाए थे। सलीम शेरवानी ने इस चुनाव में कांग्रेस से लड़ गए लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वहीं बसपा से चुनाव मैदान में उतरे बाहुबली डीपी यादव को भी हार का सामना करना पड़ा। बाद में डीपी यादव ने समाजवादी पार्टी में वापसी की कोशिशें भी की तो धर्मेन्द्र यादव ने पार्टी की कमान संभाल चुके अखिलेश यादव से अपनी असहमति जाहिर कर दी जिसके बाद समाजवादी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को धर्मेन्द्र यादव की बात माननी पड़ी। डीपी यादव का राजनैतिक कैरियर को खत्म करने का श्रेय भी धर्मेन्द्र यादव को जाता है।

धर्मेन्द्र यादव के सामने उनके ही पार्टी के नेता आबिद रजा की भी नहीं चली और उन्हें भी पार्टी से बाहर होना पड़ा। समाजवादी पार्टी से पूर्व सदर विधायक और दर्जा राज्यमंत्री आबिद रजा ने धर्मेन्‍द्र यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। जिसके बाद समाजवादी पार्टी ने उन्हें निलम्बित कर दिया था। पूर्व नगर विकास मंत्री आजम खां ने दोनों के साथ बैठकर पुराने गिले-शिकवे दूर कर झगड़े का पटाक्षेप करने की कोशिश भी की लेकिन कई मौकों पर दोनों एक दूसरे के खिलाफ बयान देते हुए नजर आते हैं।

2014 में समाजवादी पार्टी ने धर्मेन्द्र यादव पर फिर से भरोसा जताया तो वो बदायूं से दोबारा जीतकर संसद में पहुंचे। इस लोकसभा चुनाव में चली मोदी लहर में भी बदायूं सीट समाजवादी पार्टी ने जीत ली। लेकिन 2019 में मोदी की सुनामी में सपा का यह किला ध्वस्त हो गया। ऐसा तब हुआ जबकि ढाई दशक की राजनीतिक और व्यक्तिगत दुश्मनी को ताख़ पर रखकर बहुजन समाज पार्टी भी उसके साथ खड़ी थी। 1991 के बाद यहां जीत के लिए तरस रही भाजपा ने बदायूं की सीट समाजवादी पार्टी से छीन ली। उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी भाजपा प्रत्याशी डॉ. संघमित्रा मौर्य ने 5,11,228 वोट प्राप्त कर सपा के धर्मेंद्र यादव को 18,584 मतों से पराजित कर दिया। धर्मेंद्र यादव को 4,92,644 वोट मिले।

वहीं धर्मेंद्र यादव ने अपनी सीट से आए लोकसभा चुनाव परिणाम पर आपत्ति दर्ज की। फिलहाल यह मामला कोर्ट में हैं। उनका आरोप है कि आखिरी गिनती के दौरान करीब 8 हजार अतिरिक्त वोटों को गिना गया है। मीडिया से बातचीत में धर्मेन्द्र यादव ने कहा, ‘मेरी आपत्ति बिल्सी विधानसभा सीट पर हुई मतगणना को लेकर है। वोटिंग होने के बाद जो रिकॉर्ड मुझे उपलब्ध कराया गया था उन आंकड़ों के मुताबिक 1,88,248 वोट पड़े थे, सबसे कम वोट बिल्सी में ही पड़े थे। अंतिम राउंड की गिनती के बाद जो आंकड़े आए हैं, उनमें उस सीट पर 1,96,110 वोट पाए गए। इस तरह फाइनल गिनती में इस सीट पर करीब 8 हजार वोट ज्‍यादा पड़ गए हैं।’

धर्मेन्द्र यादव जनता एवं कार्यकर्ताओं के बीच बने रहते हैं, वो लोगों के सुख दुःख में शामिल होते हैं, पीड़ित व्यक्ति भी उनसे मुलाकात कर अपना दर्द भूल जाता है। क्षेत्र की जनता से आत्मीयता का ही कारण ही उनके प्रशसंकों की लम्बी फेहरिस्त है, कोरोना काल में जनता की सेवा करते हुए धर्मेन्द्र यादव संक्रमित भी हुए थे लेकिन उनके प्रशसंकों की दुआओं के बलबूते वो एकदम स्वस्थ हो गए। धर्मेंद्र यादव की मांग पर बदायूं को वर्ष 2013 में राजकीय मेडिकल कॉलेज की सौगात मिली, जनपद में उनके विकासकार्यों की तूती बोलती है जिसका उदाहरण इस बात से भी मिलता है कि जब प्रदेश की योगी सरकार तीन वर्ष पूरा करने पर उपलब्धियों का बड़े स्तर पर बखान करने के लिए बुकलेट जारी की तो धर्मेन्द्र यादव की सांसद निधि से कराए गए विकास कार्यों को भी उसमे शामिल कर लिया था, समाजवादी पार्टी ने बड़े जोर शौर से यह मुद्दा भी उठाया था। 2019 में धर्मेन्द्र यादव को दिल्ली में सर्वश्रेष्ठ फेम इंडिया युवा सांसद के सम्मान से नवाजा गया था। धर्मेन्द्र यादव हाल-फिलहाल समाजवादी पार्टी के स्टार प्रचारक हैं और अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवाद पार्टी का विस्तार करने में जुटे हैं।

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