कछला(बदायूं)। महाशिवरात्रि पर गंगा में डूबे तीन एमबीबीएस के छात्रों की मौत कई सवाल छोड़ गयी है हालांकि यह पहला हादसा नहीं है लेकिन सिस्टम के नाकारापन के चलते गंगा में डूबकर मरने वालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। कई मौतों के बावजूद भी घाट पर लोगों की सुरक्षा के लिए कोई इंतजाम नहीं है।
रविवार को एसडीआरएफ के अभियान के दौरान तीनों छात्रों के परिजन घाट पर ही मौजूद थे। हाथरस की टीचर्स काॅलोनी निवासी गंदर्भ सेंगर का बेटा नवीन सेंगर भी शनिवार को लापता हुआ था। उनकी पत्नी सुधा देवी ने कहा कि मै अब किस उम्मीद से गंगा स्नान करने आउंगी, गंगा माँ ने तो मेरा बेटा ही छीन लिया। उन्होंने बार बार गंगा से इस तरह के सवाल किए। यह एक माँ की दूसरी माँ से शिकायत थी लेकिन यह शिकायत उस प्रशासन से भी थी जो महाशिवरात्रि के पर्व पर कछला में अपनी बड़ी-बड़ी तैयारियों का दावा कर रहा था।
बलिया जिले के पकरी थाना क्षेत्र के गांव दोगरा निवासी छात्र पवन यादव की इस हादसे में मौत हो गयी। उनके रिश्तेदार प्रिंस यादव ने बताया कि छात्र गंगा के बीच में नहाने आ गए लेकिन उनको गाइड करने वाला कोई नहीं था। अगर उन्हें किसी ने नहाने से रोका होता तो शायद उनकी जान बच सकती थी। प्रिंस ने कहा कि छात्रों को तलाशने के लिए अमरोहा से एसडीआरएफ की टीम को बुलाया गया, यह तो प्रशासन की सबसे बड़ी लापरवाही है। कम से कम प्रशासन को यहाँ विशेषज्ञों की स्थानीय टीम रखनी चाहिए, जो हादसे के बाद तुरंत बाद लोगों को बचा सके।
वहीं तीसरा छात्र जय मौर्य जौनपुर के सराय ख्वाजा थाना क्षेत्र के गांव परसनी का निवासी था। छात्र के गंगा में डूबने की खबर मिलने पर चाचा दीपचंद्र मौर्य, पवन कुमार मौर्य, भाई नवीन कुमार मौर्य कछला पहुंचे थे। दीपचंद्र ने बताया कि जय के पिता महेश मौर्य ह्रदय रोग के मरीज है इसीलिए उन्हें अभी तक घटना की जानकारी नहीं दी है। मृतक छात्र के चाचा दीपचंद्र ने भी घाट सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए।
नामकरण और गंगा आरती की खानापूर्ति
कछला में गंगा घाट के नामकरण और गंगा आरती की खानापूर्ति तो हो गयी लेकिन जिस गंगा में हर महीने लाखों-करोड़ों लोग डुबकी लगाते हैं उनकी हिफाजत के लिए यहां कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं है। यह बात भी सच है कि कई बड़े त्योहारों पर रस्सियों से बैरीकेडिंग की जाती है, लोगों को गंगा से दूर स्नान करने को भी कहा जाता है लेकिन यह इंतजाम नाकाफी है। इस तरह के इंतजामों के बावजूद हादसों की लम्बी फेहरिस्त है।
अगर कोई शख्स गंगा में डूब जाए तो उसका बचना वाकई मुश्किल है। स्थानीय गोताखोरों की भी अपनी सीमाएं हैं, न उनके पास लाइफ सपोर्ट जैकेट है, न स्विमिंग सूट और न ही ऑक्सीजन मास्क। ऐसे में ठन्डे पानी में वो ज्यादा देर तक नहीं ठहर सकते, न ही वो पानी के ज्यादा भीतर तक जा पाते हैं। नतीजतन गंगा में डूबने वाले अपनी जिंदगी गंवा देते हैं। कछला गंगा घाट पर एसडीआरएफ जैसी प्रशिक्षित टीम की स्थायी तैनाती समय की मांग है।
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