लखनऊ। यूपी नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के लिए प्रदेश की योगी सरकार ने पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन कर दिया है। पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष रिटायर्ड न्यायमूर्ति राम अवतार सिंह को बनाया गया है। इनके अलावा 4 सदस्य नामित किए गए हैं।
योगी सरकार ने बुधवार को ओबीसी आरक्षण के लिए आयोग गठन को कैबिनेट बोईसर्कुलेशन से मंजूरी दी। इसके बाद नगर विकास विभाग ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी। आयोग में सेवानिवृत्त न्यायाधीश राम अवतार सिंह को अध्यक्ष बनाया गया है। सेवानिवृत्त आईएएस चोब सिंह वर्मा, पूर्व आईएएस महेंद्र कुमार, पूर्व अपर विधि परामर्शी संतोष कुमार विश्वकर्मा और पूर्व अपर विधि परामर्शी व अप जिला जज ब्रजेश कुमार सोनी को सदस्य नामित किया गया है। आयोग राज्यपाल की सहमति से 6 महीने के लिए गठित किया गया है जो जल्द से जल्द सर्वे कर रिपोर्ट शासन को सौंपेगा।
कल आया था हाईकोर्ट का फैसला
यूपी नगर निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मंगलवार को बड़ा फैसला सुनाया था। हाईकोर्ट ने कहा कि जब तक सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तय ट्रिपल टेस्ट न हो, तब तक आरक्षण नहीं माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि सरकार दोबारा एक डेडिकेटेड कमीशन बनाकर ट्रिपल टेस्ट का फॉर्मूला अपनाए और ओबीसी को आरक्षण दे। कोर्ट ने तो बिना ओबीसी आरक्षण के ही चुनाव कराने को कहा है। साथ ही ये भी कहा कि अगर बिना ट्रिपल टेस्ट कराए चुनाव हो तो सभी सीटों को सामान्य यानी अनारक्षित माना जाए।
दरअसल उत्तर प्रदेश सरकार ने पांच दिसंबर को निकाय चुनाव के लिए आरक्षण की अधिसूचना जारी की थी। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई। कहा गया कि यूपी सरकार ने आरक्षण तय करने में सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले का पालन नहीं किया है।
वहीं, कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद सीएम योगी आदित्यनाथ की प्रतिक्रिया भी सामने आई। उन्होंने कहा कि प्रदेश में पहले ओबीसी आरक्षण देंगे फिर चुनाव कराएंगे। अगर जरूरत पड़ी सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। उधर, हाईकोर्ट के फैसले के बाद विपक्षी दलों ने भी मोर्चा खोल दिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा कि आरक्षण विरोधी भाजपा निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण के विषय पर घड़ियाली सहानुभूति दिखा रही है। आज भाजपा ने पिछड़ों के आरक्षण का हक छीना है, कल भाजपा बाबा साहब द्वारा दिए गये दलितों का आरक्षण भी छीन लेगी। आरक्षण को बचाने की लड़ाई में पिछड़ों व दलितों से सपा का साथ देने की अपील है।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने आरोप लगाया कि भारतीय जनता पार्टी के गड़बड़ रवैये के कारण पिछड़ों का संवैधानिक अधिकार खत्म होने के कगार पर है। जब भी सामाजिक न्याय और आरक्षण के समर्थन में पक्ष रखने की बात आती है, भाजपा का आरक्षण विरोधी चेहरा सामने आ जाता है। नगरीय निकाय चुनावों में आरक्षण को लेकर भाजपा सरकार के गड़बड़ रवैये से ओबीसी वर्ग का महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार खत्म होने की कगार पर है।
अप्रैल-मई में हो सकते हैं चुनाव
योगी सरकार की ओर से पिछड़ों का आरक्षण तय करने के बाद ही निकाय चुनाव कराने के निर्णय से साफ हो गया है कि इसमें वक्त लगेगा। फरवरी में सरकार ग्लोबल इंवेस्टर समिट करा रही है। फरवरी-मार्च में यूपी समेत विभिन्न बोर्डों की परीक्षाएं भी होनी हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि सरकार के लिए अप्रैल या मई से पहले चुनाव कराना संभव नहीं है।
क्या है ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला?
सुप्रीम कोर्ट ने विकास किशनराव गवली की याचिका पर सुनवाई करते हुए ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले से नगर निकाय चुनाव कराने का आदेश दिया था। कोर्ट का ये आदेश सभी राज्यों को लागू करना था लेकिन अब तब उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में लागू नहीं हो सका है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि निकाय चुनाव में राज्य सरकार ट्रिपल टेस्ट फार्मूले का पालन करने के बाद ही ओबीसी आरक्षण तय कर सकती है। इस ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूले में तीन अहम बातें हैं।
- स्थानीय निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति की जांच के लिए एक आयोग की स्थापना की जाए। यह आयोग निकायों में पिछ़ड़पेन की प्रकृति का आकलन करेगा और सीटों के लिए आरक्षण प्रस्तावित करेगा।
- आयोग की सिफारिशों के तहत स्थानीय निकायों की ओर से ओबीसी की संख्या का परीक्षण कराया जाए और उसका सत्यापन किया जाए।
- इसके बाद ओबीसी आरक्षण तय करने से पहले यह ध्यान रखा जाए कि एससी-एसटी और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए कुल आरक्षित सीटें 50 फीसदी से ज्यादा न हों।
जिम्मेदारों पर हो सकती है कार्रवाई
हाईकोर्ट के फैसले से हुई किरकिरी से सरकार नाराज है। इसका खामियाजा जिम्मेदार अधिकारियों को उठाना पड़ सकता है। दरअसल रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण की अधिसूचना जारी करने को लेकर कई स्तरों पर हुई चूक हुई है। हर बार निकाय चुनाव में स्थानीय निकाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन इस बार रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण तय करने तक की प्रक्रिया से निदेशालय को दूर रखा गया, जो बड़ी चूक है। इस काम में अनुभवी के स्थान पर नए अधिकारियों को लगा दिया गया। प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों पर कार्रवाई तय मानी जा रही है।
पिछले साल दिसम्बर में आए थे नतीजे
साल 2017 में नगर निकाय चुनाव के लिए 27 अक्तूबर को अधिसूचना जारी की गई थी और तीन चरणों में संपन्न हुए चुनाव की मतगणना 1 दिसंबर को हुआ था। इस लिहाज से इस वर्ष भी समय पर चुनाव कराने केलिए सरकार को अक्तूबर में ही अधिसूचना जारी करनी थी, लेकिन नगर विकास विभाग की लचर तैयारी से चुनाव प्रक्रिया देर से शुरू हुई। वार्डों और सीटों के आरक्षण दिसंबर में हुआ। पांच दिसंबर को मेयर और अध्यक्ष की सीटों का प्रस्तावित आरक्षण जारी किया गया। नगर विकास विभाग यह मान कर चल रहा था कि 14 या 15 दिसंबर तक वह चुनाव आयोग को कार्यक्रम सौंप देगा लेकिन मामला हाईकोर्ट में फंस गया।
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