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अगर पुलिस आपको गिरफ्तार करती हैं तो क्या हैं आपके अधिकार, जानिए?

Badaun Today Staff by Badaun Today Staff
February 19, 2021
अगर पुलिस आपको गिरफ्तार करती हैं तो क्या हैं आपके अधिकार, जानिए?

प्रतीकात्मक चित्र

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किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी व उसे हिरासत में रखने के संबंध में भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों की जानकारी आम नागरिक को होनी चाहिए। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब पुलिस ने पर्याप्त कारण न होने पर भी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए लोगों को गिरफ्तार किया है। इसीलिए पुलिस थाना और पुलिस को लेकर डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि समझदारी से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की जरूरत है।

कब होती है गिरफ्तारी?

पुलिस को जब किसी व्यक्ति के द्वारा कोई संज्ञेय अपराध करने के बारे में या तो कोई विश्वसनीय शिकायत मिली हो या कोई पुख्ता जानकारी मिली हो या कोई प्रबल संशय हो तो वह किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है। या फिर, यदि कोई व्यक्ति उद्घोषित अपराधी रह चुका है, या जब किसी व्यक्ति के पास से चोरी की हुई संपत्ति बरामद की जाती है और वह व्यक्ति चोरी के अपराध में लिप्त पाया जाता है या उस संपत्ति के चोरी होने के अपराध में लिप्त होने का युक्तियुक्त संशय होता है, तो पुलिस उसे काबू में कर लेती है। इसके अलावा, जब कोई व्यक्ति किसी पुलिस अधिकारी को अपने कर्तव्य करने से रोकता है या किसी विधिपूर्ण अभिरक्षा से भागता है या भागने का प्रयास करता है, अथवा जब कोई व्यक्ति किसी सैन्य बल से भागा हुआ युक्तियुक्त रूप से पाया जाता है, तब पुलिस के द्वारा गिरफ्तारी की जाती है।

  • नियमानुसार, गिरफ्तार करते समय जोर जबरदस्ती नहीं की जाएगी । तथापि गिरफ्तार होने से बलपूर्वक प्रतिरोध के मामले में कम से कम बल प्रयोग किया जा सकता है तथापि गिरफ्तार किए जा रहे व्यक्ति के शरीर पर दिखने अथवा न दिखने वाले जख्म न लगे, यह सुनिष्चित किया जाएगा।  
  • गिरफ्तार किए जा रहे व्यक्ति की गरिमा का रक्षा की जाएगी । गिरफ्तार व्यक्ति की परेडिंग या लोक प्रदर्षन की किसी भी परिस्थिति में अनुमति नहीं होगी ।
  • व्यक्ति की गरिमा को सम्मान देते हुए जोर-जबरदस्ती तथा अक्रामकता के बिना व्यक्ति की गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करते हुए, तलाशी ली जाएगी।
  • हथकड़ी और बेड़ी का कदापि प्रयोग नहीं किया जाएगा इसे सर्वोच्च न्यायालय के प्रेम शंकर शुक्ला बनाम दिल्ली प्रशासन (1980) 3 एस.सी.सी. 526) और लोकतंत्र के नागरिक बनाम असम राज्य (1995) 3 एस.सी.सी. 743 के निर्णय में विधि के अनुसार बार बार व्याख्या की गई है और अनिवार्य कर दिया गया है ।
  • जहाँ पर बच्चों या किशोर की गिरफ्तारी की जानी है, किसी भी परिस्थिति मे बल प्रयोग या पिटाई नहीं की जाएगी । इस उद्धेशय के लिए पुलिस अधिकारी सम्मानित नागरिकों को सम्मिलित करेंगे, ताकि बच्चे या किशोर आतंकित न हो और कम से कम बलप्रयोग किया जाए।
  • सीआरपीसी की धारा 46(4) अनुसार किसी भी महिला को सूरज ढलने के बाद और सूरज निकलने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। सीआरपीसी की धारा 46 के अनुसार महिला को सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही गिरफ्तार कर सकती है। किसी भी महिला को पुरुष पुलिसकर्मी गिरफ्तार नहीं कर सकता है।

भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 के अनुसार पुलिस के पास यह अधिकार हो जाता है, कि वह किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है लेकिन पुलिस द्वारा गिरफ्तारी की शक्तियों के दुरुपयोग को कम करने और आम आदमी की सामाजिक प्रतिष्ठा और मान सम्मान बचाने के लिए सीआरपीसी की धारा 41 में संशोधन कर नई धारा ’41ए’ जोड़ी गई जो 1 नवंबर 2010 से लागू हुई।

इस धारा में स्पष्ट कहा गया है कि सात साल तक की सजा वाले अपराध के मामलों में चाहे जमानतीय हो या गैर जमानतीय नामजद आरोपी की गिरफ्तारी से पहले उसे लिखित नोटिस दिया जाएगा और नोटिस की शर्तों का पालन किए जाने की स्थिति में आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। साथ ही आरोपी को गिरफ्तार कर रिमांड पर पर लेने से पहले जांच अधिकारी द्वारा अदालत को लिखित में कारण बताने होंगे। आरोपी का पक्ष सुने बिना उसकी गिरफ्तारी नहीं होगी। इसका आशय भी साफ है कि जब तक आरोपी के विरुद्ध साक्ष्य एकत्रित न कर लिये जाएं तब तक उसकी गिरफ्तारी न हो। इस संशोधन का दूसरा आशय फर्जी एफआईआर पर भी लगाम लगाना है।

वहीं बिना वारंट के गिरफ्तार करने के लिए उस व्यक्ति का जुर्म बहुत ही संगीन होना चाहिए, इसके अलावा अब किसी विशेष परिस्थिति में यह संभावना हो कि आरोपी पुन: अपराध कर सकता है तो विवेचक केस डायरी में पर्याप्त कारण लिखने के बाद ही बिना वारंट गिरफ्तारी कर सकता है।

  • ऐसे मामलों में हत्या, डकैती, लूटमार, बलात्कार जैसे गंभीर अपराध शामिल है, इन मामलों में संदेहप्रद व्यक्ति को भाग जाने से रोकने तथा कानूनी प्रक्रिया से बच न पाने के लिए गिरफ्तारी आवश्यक है ।
  • हिंसात्मक आचरण पर संदेह किया जाता है जो और भी अपराध कर सकता है।
  • संदिग्ध व्यक्ति को साक्ष्यों को नष्ट करने से या गवाहों के साथ छेड़-छाड़ करने से या अब तक गिरफ्तार न किए गए अन्य संदिग्धों को चेतावनी देने से रोकने के लिए आवश्यक है ।
  • यदि संदिग्ध व्यक्ति एक अभ्यस्त अपराधी है जो समान्य प्रकार के या अन्य अपराध कर सकता है । (राष्ट्रीय पुलिस आयोग के तृतीय रिपोर्ट)

पुलिस अधिकारी द्वारा बिना वारंट गिरफ्तारी के नियम

  • सीबीआई और रॉ (आर. ए. डब्ल्यू.) के अधिकारीयों को छोड़कर सभी पुलिस के अधिकारी यदि किसी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार करने जाते हैं, तो उस व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय अपने नाम व पद का सही तथा स्पष्ट पहचान धारण करना अनिवार्य होता है।
  • पुलिस अधिकारी को यह निश्चित करना अनिवार्य होगा कि उक्त व्यक्ति जिसे वह गिरफ्तार कर रहा है, वह वास्तव में कानून का उल्लंघन कर चुका है, या करने वाला है, या करने की तैयारी कर रहा है।
  • अगर गिरफ्तारी अपराध घटित होने के बाद की जा रही है, तो पुलिस अधिकारी को सबसे पहले घटना का समन तैयार करना होगा, उसके बाद ही उस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जा सकेगा।
  • भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (ख) के अनुसार पुलिस द्वारा गिरफ्तार किये गए व्यक्ति को कम से कम एक साक्षी द्वारा जो आरोपी के परिवार का सदस्य है, उससे अनुप्रमाणित कराना अनिवार्य होगा।
  • भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41 (ग) के अनुसार सरकार को भारत के प्रत्येक जिलों में एक पुलिस नियंत्रण कक्ष स्थापित करना अनिवार्य होगा तथा नियंत्रण कक्ष के बाहर लगे नोटिस बोर्ड पर गिरफ्तार किये गए व्यक्ति का नाम उसके पते के साथ प्रदर्शित करना भी अनिवार्य होगा।
  • बिना वारंट के गिरफ्तारी की शक्ति का प्रयोग, किसी शिकायत की सच्चाई और महत्वता तथा दोनों ही व्यक्तियों की अपरााधिता के संबंध में उचित विश्वास और साथ ही साथ गिरफ्तार करने की जरूरत के अनुसार, कुछ जाँच के उपरांत तर्कसंगत निर्णय पर पहुँचने के बाद किया जा सकता है । (जोगिन्दर कुमार का मामला- (1994) 4 एस.सी.सी. 260)

सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश

भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने डी. के. बसु बनाम पश्चिम बंगाल राज्य तथा जोगिन्दर कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के मामले में किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के नियम व अधिकार के बारे में कई दिशा निर्देश दिये हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग न हो और हिरासत में यातना को रोका जा सके। इन्हें भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 में संशोधन करने के बाद समाविष्ट कर लिया गया है।

2012 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश के प्रत्येक थाने में सुप्रीम कोर्ट के डीके बसु केस में जारी किए गए दिशा निर्देशों को प्रमुख थानों पर लिपिबद्ध करने का निर्देश दिया था। न्यायालय ने प्रदेश के डीजीपी एवं प्रमुख गृह सचिव को इसका अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए आदेश की प्रति प्रेषित करने का आदेश दिया। हालाँकि आज भी कई पुलिस थानों में डीके बसु गाइडलाइंस को लिपिबद्ध नहीं किया गया है, यही वजह है कि आम आदमी को इनकी जानकारी नहीं है। यदि उपरोक्त किसी भी कानून का पुलिस पालन नहीं करती है तो उसकी गिरफ्तारी गैरकानूनी होगी और इसके लिए पुलिस के खिलाफ कार्रवाई भी की जा सकती है। क्योंकि गिरफ्तारी से दैहिक स्वतंत्रता प्रभावित होती है अतः गिरफ्तारी सदैव विधि द्वारा स्थापित सम्यक प्रक्रिया के अनुसार ही की जानी चाहिए।

  • सीआरपीसी की धारा 50 (1) के तहत पुलिस को गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताना होगा।
  • किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी को वर्दी में होना चाहिए और उसकी नेम प्लेट में उसका नाम साफ-साफ लिखा होना चाहिए।
  • सीआरपीसी की धारा 41 बी के मुताबिक पुलिस को अरेस्ट मेमो तैयार करना होगा, जिसमें गिरफ्तार करने वाले पुलिस अधिकारी की रैंक, गिरफ्तार करने का टाइम और पुलिस अधिकारी के अतिरिक्त प्रत्यक्षदर्शी के हस्ताक्षर होंगे। अरेस्ट मेमो में गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से भी हस्ताक्षर करवाना होगा।
  • सीआरपीसी की धारा 50(A) के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को अधिकार होगा कि वह अपनी गिरफ्तारी की जानकारी अपने परिवार या रिश्तेदार को दे सके। अगर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को इस कानून के बारे में जानकारी नहीं है तो पुलिस अधिकारी को खुद इसकी जानकारी उसके परिवार वालों को देनी होगी।
  • सीआरपीसी की धारा 54 में कहा गया है कि अगर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति मेडिकल जांच कराने की मांग करता है, तो पुलिस उसकी मेडिकल जांच कराएगी। मेडिकल जांच कराने से फायदा यह होता है कि अगर आपके शरीर में कोई चोट नहीं है तो मेडिकल जांच में इसकी पुष्टि हो जाएगी और यदि इसके बाद पुलिस कस्टडी में रहने के दौरान आपके शरीर में कोई चोट के निशान मिलते हैं तो पुलिस के खिलाफ आपके पास पक्का सबूत होगा। मेडिकल जांच होने के बाद आमतौर पर पुलिस भी गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के साथ मारपीट नहीं करती है।
  • कानून के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की हर 48 घंटे के अंदर मेडिकल जांच होनी चाहिए।
  • सीआरपीसी की धारा 57 के तहत पुलिस किसी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं ले सकती है। अगर पुलिस किसी को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखना चाहती है तो उसको सीआरपीसी की धारा 56 के तहत मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी और मजिस्ट्रेट इस संबंध में इजाजत देने का कारण भी बताएगा।
  • सीआरपीसी की धारा 41D के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को यह अधिकार होगा कि वह पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने वकील से मिल सकता है, साथ ही वह अपने वकील और परिजनों से बातचीत कर सकता है।
  • अगर गिरफ्तार किया गया व्यक्ति गरीब है और उसके पास पैसे नहीं है तो उनको मुफ्त में कानूनी मदद दी जाएगी यानी उसको फ्री में वकील मुहैया कराया जाएगा।
  • सीआरपीसी की धारा 55 (1) के मुताबिक गिरफ्तार किए गए व्यक्ति की सुरक्षा और स्वास्थ्य का ख्याल पुलिस को रखना होगा।
  • जहां तक महिलाओं की गिरफ्तारी का संबंध है तो सीआरपीसी की धारा 46(4) कहती है कि किसी भी महिला को सूरज डूबने के बाद और सूरज निकलने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है हालांकि अगर किसी परिस्थिति में किसी महिला को गिरफ्तार करना ही पड़ता है तो इसके पहले एरिया मजिस्ट्रेट से इजाजत लेनी होगी।
  • सीआरपीसी की धारा 46 के मुताबिक महिला को सिर्फ महिला पुलिसकर्मी ही गिरफ्तार करेगी। किसी भी महिला को पुरुष पुलिसकर्मी गिरफ्तार नहीं करेगा।
  • नॉन कॉग्निजेबल ऑफेंस यानी असंज्ञेय अपराधों के मामले में गिरफ्तार किए जाने वाले व्यक्ति को गिरफ्तारी वारंट देखने का अधिकार होगा हालांकि कॉग्निजेबल ऑफेंस यानी गंभीर अपराध के मामले में पुलिस बिना वारंट दिखाए भी गिरफ्तार कर सकती है।

मौलिक अधिकारों का न हो हनन

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार भारत का प्रत्येक नागरिक शारीरिक रूप से कहीं भी जाने और आने के लिए स्वतंत्र है, अर्थात वह अपने मन से कहीं भी आ और जा सकता है, लेकिन ऐसे किसी भी स्थान को छोड़कर जहां किसी आम आदमी के लिए जाने के लिए पाबंदी लगाई जाती है। अगर पुलिस किसी को गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार करती है तो यह न सिर्फ भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी का उल्लंघन है, बल्कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20, 21और 22 में दिए गए मौलिक अधिकारों के भी खिलाफ है। मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर पीड़ित पक्ष संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सीधे सुप्रीम कोर्ट जा सकता है।

अगर पुलिस शिकायत दर्ज न करे तो क्या करें?

अगर कोई पुलिसकर्मी एफआईआर दर्ज करने से मना करे तो उस पर कार्रवाई भी हो सकती है। साथ ही उसे विभागीय कार्रवाई का भी सामना करना पड़ सकता है। अब अगर पुलिस शिकायत दर्ज करने से मना करे तो सबसे पहले आप वरिष्ठ अधिकारियों के पास लिखित में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। वरिष्ठ अधिकारी के कहने के बाद भी अगर एफआईआर दर्ज नहीं की गई तो आप अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के तहत मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत में अर्जी दे सकते हैं। मजिस्ट्रेट को यह अधिकार है कि वो पुलिस को एफआईआर दर्ज करने को कह सकता है।

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