लखनऊ। यूपी नगर निकाय चुनाव को लेकर मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया है। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ तौर पर कहा है कि राज्य में इस बार निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के होगा हालाँकि बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराना सरकार के लिए मुश्किल है ऐसे में यूपी सरकार हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यूपी सरकार को झटका देते हुए निकाय चुनावों के लिए 5 दिसंबर को जारी ड्राफ्ट नोटिफिकेशन को खारिज कर दिया है। लखनऊ बेंच ने मंगलवार को 70 पेजों का फैसला सुनाया। अपने फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा जारी की गई ओबीसी आरक्षण सूची को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने 2017 के ओबीसी रैपिड सर्वे को नकार दिया है।
साथ ही हाईकोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश अनुसार ओबीसी आरक्षण देने के लिए एक कमीशन बनाया जाए, तभी ओबीसी आरक्षण दिया जाए, सरकार ट्रिपल टी फॉर्मूला अपनाए, इसमें समय लग सकता है, ऐसे में अगर सरकार और निर्वाचन आयोग चाहे तो बिना ओबीसी आरक्षण ही तुरंत चुनाव करा सकता है।
हाईकोर्ट के फैसले के बाद यूपी सरकार की तरफ से जारी ओबीसी आरक्षण नोटिफिकेशन रद्द हो गया है। अगर सरकार चुनाव कराती है तो ओबीसी सीटों को जनरल ही माना जाएगा। वहीं एससी और एसटी सीटों के लिए सीटें पहले जैसी ही रहेंगी यानि उनमें कोई फेरबदल नहीं होगा। यह भी स्पष्ट किया है कि संवैधानिक प्रावधानों के मुताबिक महिला आरक्षण दिए जाएं।
माना जा रहा है कि हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ यूपी सरकार सुप्रीम कोर्ट जा सकती है। उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने ट्वीट कर कहा कि नगरीय निकाय चुनाव के संबंध में उच्च न्यायालय इलाहाबाद के आदेश का विस्तृत अध्ययन कर विधि विशेषज्ञों से परामर्श करने के बाद सरकार के स्तर पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा, परंतु पिछड़े वर्ग के अधिकारों को लेकर कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
दरअसल, ओबीसी आरक्षण के बिना निकाय चुनाव का मुद्दा बीजेपी के ओबीसी वोट बैंक पर असर डाल सकता है। लिहाजा बीजेपी कभी नहीं चाहेगी की ऐसी नौबत आए। ओबीसी आरक्षण योगी सरकार के लिए ऐसा मसला है जिस पर विपक्ष लगातार घेराबंदी कर रहा है। हाईकोर्ट का फैसला आने के तुरंत बाद विपक्ष ने सरकार पर ओबीसी आरक्षण को खत्म करने की साजिश करने का आरोप लगाना शुरू कर दिया है। सपा नेताओं का कहना है कि सरकार ने जानबूझकर कुछ ऐसे पेंच छोड़ दिए जिनके चलते ओबीसी आरक्षण के बिना चुनाव की बात आई है।
दायर की गयी थी याचिका
नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण लागू करने में प्रक्रिया का पालन न करने का आरोप राज्य सरकार पर लगाते हुए जनहित याचिका दाखिल की गई थी। याचिका का राज्य सरकार के अधिवक्ता ने विरोध किया। राज्य सरकार ने कहा है कि राज्य ने इन चुनावों में आरक्षण लागू करने के लिए नगरपालिका अधिनियम 1916 और नगर निगम अधिनियम 1959 के प्रावधानों के साथ ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया है। राज्य ने कहा कि उसने स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए 2017 में एक व्यवस्था बनाई थी जिसमें मानक परिचालन प्रक्रिया उपलब्ध कराई गई है और इस चुनाव में भी उसी प्रकिया को अपनाया गया है।
क्या है ट्रिपल टेस्ट
सुप्रीम कोर्ट ने सुरेश महाजन मामले में आदेश दिया था कि ट्रिपल टेस्ट के तहत स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण दिए जाने के लिए एक आयोग का गठन किया जाएगा जो निकायों में पिछड़ेपन की प्रकृति की जांच करेगा, तत्पश्चात ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को प्रस्तावित करेगा तथा सुनिश्चित करेगा कि आरक्षण 50 प्रतिशत से अधिक न हो।
नगर निकाय चुनाव की तैयारी में जुटे सभी दल
नगर निकाय चुनाव को लेकर यूपी में सभी दल जोर आजमाइश में जुटे हुए हैं। भाजपा ने चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार होने का दावा किया है। बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती भी नगर निकाय चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई है। पार्टी को एक बार फिर प्रदेश में स्थापित कराने की कोशिश चुनाव में हो रही है। इसके लिए सामाजिक समीकरण तैयार किए जा रहे हैं। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार जिलों का दौरा कर रहे हैं। कांग्रेस भी अपनी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ रही है।