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उझानी: हर दिन खतरा मोल ले रहे हैं बच्चे, स्कूल प्रशासन खामोश

by Badaun Today Staff
October 7, 2018
in उझानी
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उझानी: हर दिन खतरा मोल ले रहे हैं बच्चे, स्कूल प्रशासन खामोश
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उझानी। कस्बे में अनेक स्कूलों के बच्चों को लाने ले जाने के लिए ई-रिक्शा का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिनमें बेहिसाब बच्चे ले जाए जा रहे हैं। बच्चों की सुरक्षा को लेकर न तो स्कूल प्रबंधन चिंतित है और न ही परिवहन विभाग गंभीर है। ऐसे में किसी बड़े हादसे का खतरा बना है।

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कस्बे में अनेक स्कूलों के हजारों बच्चे स्कूल की बसों, वैन, थ्री-व्हीलर व ई-रिक्शा से स्कूल आते-जाते हैं। कुछ स्कूलों के पास निजी वाहन हैं, जबकि कुछ प्राइवेट बस सर्विस वालों या वैन आदि वाहनों का सहारा लेते हैं। अनेक स्कूलों के वाहनों की हालत खस्ता है। वहीं स्कूलों के कुछ बच्चे कई ई-रिक्शा में बेहिसाब भरे हुए नजर आ रहे हैं।  शनिवार सुबह कस्बे के मुख्य चौराहे पर एक ई-रिक्शा चलते हुए टूट गया। इस दौरान उसमे एक स्कूल के 15 बच्चे सवार थे, गनीमत रही कि किसी बच्चे को चोट नहीं आई। 

ई रिक्शा का सफर नौनिहालों के लिए जान का खतरा मोल लेने से कम नहीं है क्योंकि ई-रिक्शा जिसमें घातक तेजाब से भरी बैटरियां सीट के नीचे रखी हुई होती हैं और टेंपो जो तीन पहियों के सहारे सड़क पर दौड़ता है इनका इस्तेमाल स्कूली वाहन के लिए करना खतरे से खाली नहीं। स्कूली छात्र भूसे के बोरों की तरह इन ई-रिक्शाओं में भरे जा रहे हैं। तीन से चार बच्चे चालक अपने आसपास बैठा रहे हैं। चार से छह बच्चे तक रिक्शा के बाहर पिछली साइड में लगे फ्रेम में बैठा दिए जाते हैं। अंदर सीट पर सात- आठ बच्चे बैठाए जाते हैं। पीछे की दोनों सीटों के बीच में चार पांच बच्चे खड़े कर दिए जाते हैं। सस्ते के चक्कर में अभिभावक भी ध्यान नहीं दे रहे कि बच्चे उनके किस तरह स्कूल जा रहे हैं। हालत ये है कि ई रिक्शा में बीस से तीस तक बच्चे ढोए जा रहे हैं।

परिवहन विभाग के नियमों के मुताबिक किसी भी ई रिक्शा या तीन पहिया वाले वाहन में स्कूली बच्चों को नहीं ले जाया जा सकता। अगर कोई ऐसा करता है तो यह गैरकानूनी है, इतना ही नहीं सड़कों पर रोज इस तरह से बच्चों को ई-रिक्शा और टेंपो में ठूस कर ले जाते हुए देखने के बावजूद प्रशासन की ओर कोई कार्यवाही होती नहीं दिखती। हैरानी की बात यह रही कि इन स्कूली वाहनों में कोई भी परिचालक या टीचर मौजूद नहीं रहता। केवल एक चालक पर ही सभी बच्चों की जिम्मेदारी रहती है। इस लापरवाही पर ना तो परिजनों का ध्यान है और ना ही स्कूल प्रबंधन बच्चों की सुरक्षा को लेकर इतना गंभीर हैं।

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